पुस्तकालय

संस्थान का अपना एक पुस्तकालय है जो आकार और संख्या की दृष्टि से लघुकाय होने के बावजूद ऐतिहासिक विषयों पर शोध एवं अनुसन्धान के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सामग्रियों को समेटे हुए है। नवलकिशोर छापखाना, लखनऊ एवं इस युग में अन्य भारतीय प्रान्तों से लीथो के रूप में प्रकाशित हिन्दी‑संस्कृत के लगभग हजारों दुर्लभ ग्रन्थ, हिन्दी की कई शोध‑पत्रिकाओं के प्राचीन अंक, संस्कृत के सैकड़ों धार्मिक तथा साहित्यिक ग्रन्थों के फारसी तथा उर्दू अनुवादों के प्रकाशित प्राचीन संस्करण, अनूदित तथा कई दुर्लभ ग्रन्थों की छायाप्रतियाँ, प्राच्यविद्या एवं विषयों; विशेषकर संस्कृत‑पाली‑प्राकृत भाषा एवं साहित्य पर स्मरणीय कार्य करने वाले विदेशी विद्वानों का चित्र‑संग्रह एवं इसी प्रकार की अन्य शोध‑सामग्रियाँ इस पुस्तकालय की अमूल्य सम्पत्ति है।

पुस्तकालय इसके सदस्यों के लिए मात्र, पुस्तकालयीय-नियमों के अन्तर्गत; उनकी पूर्व-सूचना पर उपयोग के लिए खुलता है।

हस्तलिखित ग्रन्थ (पाण्डुलिपियाँ)

इस संस्थान के पास पाण्डुलिपियों का एक वैयक्तिक संग्रह है जिसमें मुख्यतः संस्कृत‑वाङ्मय की विभिन्न धाराओं ‑ वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, सूत्र, स्मृति, पुराण, वेदांग, कर्मकाण्ड, साहित्य, प्राचीन पञ्चाङ्ग आदि तथा हिन्दी‑साहित्य से सम्बन्धित लगभग एक हजार दुर्लभ ग्रन्थ हैं। ये पाण्डुलिपियाँ काशी तथा मिथिला के कई परिवारों के पास असुरक्षित स्थिति में उपलब्ध थीं जिन्हें उनके स्वामियों से दान‑स्वरूप, भेंट‑स्वरूप तथा क्रय करके संगृहीत की गईं। संस्थान में उपलब्ध वे पाण्डुलिपियाँ जो भेंट या दान‑स्वरूप प्राप्त हुईं हैं वे इनके दाताओं के नाम से संगृहीत हैं, जिनमें ‑ राजहंस (कान्तानाथ पाण्डेय ‘चोंच‑बनारसी’) संग्रह, गोविन्द शास्त्री घोड़ेकर‑संग्रह, मीरघाट‑संग्रह, डॉ. उमेश सिंह‑संग्रह, आदि।

हस्तलिखित‑ग्रन्थसूची