‘अखिल भारतीय मुस्लिम‑संस्कृत संरक्षण एवं प्राच्य शोध संस्थान’ २००४ ईस्वी को अपने मूर्त अस्तित्त्व में आया। संस्कृत-वाङ्मय के अज्ञात साहित्य एवं उसके विविध अनालोचित पक्षों पर शोध, अनुसन्धान एवं संस्कृत‑शिक्षण सम्बन्धी कार्यों के लिए स्थापित यह संस्थान ‘सर्वविद्या की राजधानी’ काशी में अवस्थित है। अपने युग के तीन प्रख्यात एवं स्वनामधन्य आचार्यों; पण्डित वासुदेव द्विवेदी शास्त्री (काशी), पण्डित सीताराम चतुर्वेदी (काशी), पण्डित सैयदहुसैन शास्त्री (मलीहाबाद‑लखनऊ) तथा पण्डित गुलाम दस्तगीर (मुम्बई) के परामर्श एवं मार्गनिर्देशन में प्राथमिक रूप से इसकी स्थापना हुई।
वर्ष २०२० के अन्तिम महीनों में यह संस्थान "प्रत्नकीर्ति प्राच्य शोध संस्थान" के रूप में पुनर्गठित हो कर (Society Registration Act-21, 1860) के अन्तर्गत पंजीकृत हुआ। सात सदस्यीय प्रबन्ध-समिति द्वारा संचालित यह संस्थान बिना किसी सरकारी या गैर-सरकारी सहायता के अपने उद्देश्यों के अनुरूप विविध परियोजनाओं और शोध-कार्यों में संलग्न है।