संस्कृत-साहित्य को मुस्लिमों का योगदान, खण्ड-2 (भाग-1)

- मुगल सम्राट् अकबर और संस्कृत (2 भागों में)
- लेखक: प्रताप कुमार मिश्र
- प्रथम संस्करण - 2012 ई.
- भूमिका 11,+1020 पृष्ठ
- चित्र : 36 रंगीन, 40 श्वेतश्याम
- ISBN: 978-81-906145-2-8 (H.B.) Part-1
- ISBN: 978-81-906145-3-5 (H.B.) Part-2
- ISBN: 978-81-906145-7-3 (H.B.) भाग-3
मुगल सम्राट् अकबर और संस्कृत (भाग-१)
अकबर का संस्कृत-प्रेम और संस्कृत-वाङ्मय को इस मुग़ल सम्राट् का विशिष्ट योगदान बहुत संदर्भों में आश्चर्यचकित कर देने वाला है। मध्यकालीन इतिहास से परिचित और प्राच्य विद्या में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को तो नहीं लेकिन इनसे अपरिचित और अल्पपरिचित व्यक्तियों को तो यकायक इस तथ्य पर यकीन ही नहीं होगा कि अकबर के आदेश, निर्देश या उसकी रुचि को महत्ता देते हुए समकालीन संस्कृत-पण्डितों, जैन आचार्यों तथा विविध दरबारी संस्कृत-सेवियों ने इतनी संख्या में संस्कृत-ग्रन्थों की भी रचना की।
अकबरी दरबार में प्रणीत इन संस्कृत ग्रन्थों की इदमित्त्थं संख्या अभी न तो ज्ञात है और न ही बताई जा सकती है। सौभाग्य से इनमें अधिकांश ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है लेकिन दुर्भाग्य यह भी यह है कि प्रकाशित संस्करण अप्रकाशित के समान ही दुर्लभ एवं विरल हैं। कुछ ग्रन्थों का परिमाण ही ऐसा है कि हमारी परियोजना एवं प्रकाशन-कार्यक्रम के नजरिये से उन्हें प्रकाशित नहीं किया जा सकता था। अतः इस भाग में हम मुगल सम्राट् अकबर के आदेश पर लिखे गए सात उन संस्कृत-ग्रन्थों का प्रकाशन कर रहे हैं जो परिमाण में हमारे अनुरूप हैं, दुर्लभ और अप्राप्य हैं और जिन्हें प्रकाशित करना हमारे लिये आवश्यक है।
आशा है हमारा यह प्रयत्न अपने वाञ्छित परिणाम प्राप्त करेगा और भारतीय जन-मानस को एक ऐसा अवसर प्रदान करेगा जिससे वह संस्कृत-साहित्य को मुस्लिमों के योगदान का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकेगा।
संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तकों पर विद्वानों की सम्मतियाँ / समीक्षाएँ